सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह भाजपा नेता और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की उस याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें केंद्र सरकार को राम सेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ 26 जुलाई को सुनवाई के लिए याचिका सूचीबद्ध करने के लिए सहमत हुई है। पीठ ने पहले कहा था कि वह ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि संबंधित पीठ के न्यायाधीशों में से एक को कुछ स्वास्थ्य समस्याएं थीं। सीजेआई ने सुब्रमण्यम स्वामी से कहा कि हम इसे सूचीबद्ध करेंगे। स्वामी ने 13 जुलाई और कुछ समय पहले भी मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का जिक्र किया था।
तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट पर पंबन द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के बीच ‘रामसेतु’ चूना पत्थरों की एक श्रृंखला है। रामसेतु को एडम ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था कि वह पहले ही मुकदमे का पहला दौर जीत चुके हैं, जिसमें केंद्र सरकार ने राम सेतु के अस्तित्व को स्वीकार किया था। उन्होंने कहा कि संबंधित केंद्रीय मंत्री ने उनकी मांग पर विचार करने के लिए 2017 में एक बैठक बुलाई थी लेकिन बाद में कुछ नहीं हुआ।
भाजपा नेता ने यूपीए-1 सरकार द्वारा शुरू की गई विवादास्पद सेतुसमुद्रम शिप चैनल परियोजना के खिलाफ जनहित याचिका में राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने का मुद्दा उठाया था। मामला शीर्ष अदालत तक पहुंचा, जिसने 2007 में रामसेतु पर परियोजना के लिए काम पर रोक लगा दी थी। केंद्र सरकार ने बाद में कहा था कि उसने परियोजना के ‘सामाजिक-आर्थिक नुकसान’ पर विचार किया था और राम सेतु को नुकसान पहुंचाए बिना शिपिंग चैनल परियोजना के लिए एक और मार्ग तलाशने को तैयार था।
संबंधित मंत्रालय की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि भारत सरकार देश के हित में एडम पुल/रामसेतु को प्रभावित/क्षतिग्रस्त किए बिना पोत चैनल परियोजना के पहले के मार्गरेखा के विकल्प का पता लगाने का इरादा रखती है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से नया हलफनामा दाखिल करने को कहा।
सेतुसमुद्रम शिपिंग चैनल परियोजना को कुछ राजनीतिक दलों, पर्यावरणविदों और कुछ हिंदू धार्मिक समूहों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। परियोजना के तहत मन्नार को पाक स्ट्रेट को जोड़ने के लिए व्यापक तौर पर तलकर्षण और चूना पत्थर को हटाकर 83 किमी जल चैनल बनाया जाना था। 13 नवंबर, 2019 को शीर्ष अदालत ने केंद्र को राम सेतु पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था। इसने सुब्रमण्यम स्वामी को केंद्र सरकार का जवाब दाखिल नहीं करने पर अदालत का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता भी दी थी।