यूनिक लैंड पार्सल आइडेंटिफिकेशन नंबर (यूएलपीआईएन) स्कीम इसी साल देश के 10 राज्यों में शुरू की गई थी और अगले साल मार्च (2022)से इसे पूरे देश में लागू करने दिए जाने की योजना है। इस काम को पूरा करने के लिए आधार नंबर को भी लैंड रिकॉर्ड से जोड़ना है, इसलिए काम पूरा करने के लिए भूमि सुधार विभाग ने 2023-24 तक का विस्तार भी मांगा था। इस काम के लिए सर्वेक्षण और भू-संदर्भित भूकर मानचित्र का इस्तेमाल किया जा रहा है। आइए जमीन का ‘आधार कार्ड’ बताए जाने वाले इस योजना के बारे में सबकुछ जानते हैं।
जमीन का आधार कार्ड क्या है ?
केंद्र सरकार ने मार्च 2022 से पूरे देश में यूनिक लैंड पार्सल आइडेंटिफिकेशन नंबर (यूएलपीआईएन) योजना को लॉन्च करने की तैयारी कर रखी है। 14 अंकों वाला यह नंबर देश में हर जमीन के टुकड़े को दिया जाएगा, जिसे जमीन का ‘आधार कार्ड’ कहा जा रहा है। दरअसल, इसके लिए देशभर में लैंड रिकॉर्डस का डिजिटलीकरण हो रहा है और जमीनों के हर प्लॉट के ब्योरे को सर्वे करके उसे ऑनलाइन किया जा रहा है। लक्ष्य है जमीन के हर टुकड़े के लिए विशेष पहचान वाला नंबर जारी करना। यानी जिस तरह से ‘आधार कार्ड’ के जरिए भारत में किसी भी व्यक्ति का पूरा ब्योरा मिल जाता है, उसी तरह से यूएलपीआईएन से किसी भी जमीन का पूरा रिकॉर्ड एक क्लिक में प्राप्त किया जा सकेगा।
क्यों तैयार हो रहे हैं यूएलपीआईएन ?
देश में हर भूखंड को विशेष पहचान वाला नंबर देने का मकसद जमीनों से जुड़ी धोखाधड़ी को रोकना है। खासकर भारत के ग्रामीण इलाकों में यह बहुत ही बड़ी समस्या रही है, जहां जमीनी दस्तावेज काफी पुराने हो चुके हैं। कई दस्तावेज तो अरबी-फारसी में लिखे मिलते हैं, जिनके लिए हर जगह ट्रांसलेटर मिलना भी मुश्किल है। इसकी वजह से अदालतों में सिविल सूट के मामलों की भरमार लगी हुई है। जमीन विवाद की वजह से भ्रष्ट सरकारी बाबुओं और जमीन नापने वाले लोगों को भी अवैध वसूली का मौका मिल जाता है।
कैसे की जा रही है भूखंडों की पहचान ?
डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम की शुरुआत 2008 में ही हुई थी। जब मोदी सरकार ने 2016 में डिजिटल इंडिया मिशन लॉन्च किया तो इस काम में रफ्तार आई। यूएलपीआईएन संबंधित भूखंड के अक्षांश और देशांतर से तय किया जाता है। तैयार होने के बाद यह यूनिक नंबर बैंकों और सरकार कार्यालयों के पास भी उपलब्ध होंगे और जिस तरह से आधार नंबर से किसी व्यक्ति का बही-खाता निकल आता है, उसी तरह से यूएलपीआईएन के जरिए उस जमीन का पूरा रिकॉर्ड निकल आएगा। जैसे कि जमीन किसकी है, यह कितनी बार और किसे खरीदी-बेची गई है।
यूएलपीआईएन में क्या प्रगति है ?
पूरे देश में जमीन के हर टुकड़े को यूएलपीआईएन देने का काम मार्च 2022 तक शुरू हो जाना है। जानकारी के मुताबिक देश के कुल 6.56 लाख गांवों में से 6.08 के जमीन के रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण किया भी जा चुका है। इसके अलावा देश के कुल 5,220 रजिस्ट्री ऑफिसों में से भी ज्यादातर यानी 4,883 भी ऑनलाइन हो चुके हैं। 13 राज्यों में 7 लाख जमीन के टुकड़ों के लिए ‘आधार कार्ड’ जारी भी किए जा चुके हैं और 13 में पायलट प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। हालांकि, बिहार जैसे राज्य में अभी जमीन के डिजिटकलीकरण का ही काम अधूरा है और इसके लिए सर्वे का काम बार-बार टलता जा रहा है।
यूएलपीआईएन से क्या फायदा होगा ?
इससे जमीन का पूरा रिकॉर्ड हमेशा अपडेट रहेगा।
इससे जुड़े प्रॉपर्टी की सारी लेन-देन स्थापित की जा सकेगी।
जमीन का रिकॉर्ड निकालने के लिए नागरिकों को राजस्व और रजिस्ट्री अधिकारियों की जेब गरम नहीं करनी पड़ेगी।
जमीन की खरीद-बिक्री का काम आसान और सुरक्षित होगा और कानूनी विवादों में कमी आएगी।
कोई भी नागरिक दुनिया में कहीं से भी ऑनलाइन अपनी जमीन का रिकॉर्ड चेक कर सकता है और खुद ही उसका प्रिंट भी निकाल सकता है।
जमीन के दस्तावेजों के सहारे नागरिकों को मिलने वाली सुविधाएं (जैसे कि लोन, सरकारी सहायता) सिंगल विंडो के जरिए लेना और देना दोनों आसान रहेगा।
विभिन्न विभागों, संस्थानों और सारे स्टेकहोल्डर्स के बीच जमीन के रिकॉर्ड को साझा करना बेहद आसान हो जाएगा।
जमीन की बेनामी कारोबार पर रोक लगेगी, फर्जी दस्तावेज के सहारे जमीन बेचने की घटनाएं घटेंगी।
अभी कैसे रखा जाता है लैंड रिकॉर्ड ?
अभी जमीन का मूल रिकॉर्ड रेवेन्यू और रजिस्ट्री ऑफिस में उपलब्ध होते हैं। पुश्तैनी जमीनों के मामले में रिकॉर्ड अपडेट ना के बराबर होते हैं। जिससे कानूनी विवादों के मामले बढ़ते चले जा रहे हैं। भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी रिकॉर्ड में घालमेल करके विवाद को और बढ़ा देते हैं। ग्रामीण इलाकों में किसी की भी जमीन के दस्तावेजों से छेड़छाड़ होने की आशंका बनी रहती है। बिहार जैसे राज्य में दाखिल-खारिज की प्रक्रिया को बहुत ही मुश्किल बनाया हुआ है और भ्रष्टाचारियों की चांदी हो रही है। अभी जमीन की पहचान गांव को इकाई मानकर की जाती है, जिसके लिए चौहद्दी का सहारा लिया जाता है। लेकिन, जब जमीनों के रिकॉर्ड डिजिटल हो जाएंगे और सबको यूनिक नंबर मिल जाएगा हर जमीन की अपनी पहचान होगी और आधार से जुड़ने पर वह किसकी है यह भी आसानी से पहचानी जा सकेगी।